कांग्रेस ( ) की तीनों सरकारों के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न होकर बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ( ) ने दूरी बनाई तो उनके
नए सहयोगी बने सपा मुखिया अखिलेश यादव ( ) ने भी आमंत्रण के
बावजूद शिरकत नहीं की। सपा-बसपा के इस कदम को सीधे सीधे यूपी में बनने वाला
गठबंधन के दाव-पेच के रूप में देखा जा रहा है।
यह दोनों नेता इससे पहले दिल्ली में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पहल पर एनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों की बुलाई गई बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे। वैसे तो मध्य प्रदेश की सरकार के बहुमत की कमी को पूरा करने के लिए बसपा व सपा ने समर्थन दि
कांग्रेस ( ) की तीनों सरकारों के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न होकर बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ( ) ने दूरी बनाई तो उनके नए सहयोगी बने सपा मुखिया अखिलेश यादव ( ) ने भी आमंत्रण के बावजूद शिरकत नहीं की। सपा-बसपा के इस कदम को सीधे सीधे यूपी में बनने वाला गठबंधन के दाव-पेच के रूप में देखा जा रहा है।
यह दोनों नेता इससे पहले दिल्ली में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पहल पर एनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों की बुलाई गई बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे। वैसे तो मध्य प्रदेश की सरकार के बहुमत की कमी को पूरा करने के लिए बसपा व सपा ने समर्थन दिया है लेकिन यह फैसला मजबूरी का ही दिखता है। इन दोनों पार्टी के तीन विधायक सरकार की स्थिरता के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। पर इसके बावजूद बसपा का कांग्रेस के प्रति आक्रामक रवैये में फिलहाल बदलाव नहीं दिखता है। मायावती ने तो हाल ही में इन राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा व कांग्रेस को एक जैसा बताते हुए इनसे सावधान रहने को कहा था।
तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने व पार्टी का ग्राफ बढ़ने के बावजूद लगता नहीं कि यूपी में गठबंधन के वक्त कांग्रेस की अपेक्षाकृत ज्यादा सीटों की मांग पर गौर होगा। इस समय गठबंधन की कुंजी मायावती के हाथ हैं और समाजवादी पार्टी गठबंधन बनाने की हर मुमकिन कोशिश के तहत बसपा की राह पर चलती दिखती है।
जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव बाद कांग्रेस के समर्थन से जद सेकुलर के नेता एचडी कुमार स्वामी मुख्यमंत्री बने तब उनके शपथ ग्रहण समारोह में न केवल मायावती ने शिरकत की बल्कि उस वक्त वहां मौजूद सोनिया गांधी व मायावती के बीच खासी आत्मीयता पूर्ण मुलाकात भी हुई थी। इस आयोजन में तब अखिलेश यादव, पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत समेत विपक्षी दलों के तमाम बड़े नेता शामिल हुए थे। उस वक्त बसपा ने जद सेकुलर के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन यूपी के हालात खासे जुदा हैं और बसपा कांग्रेस को बहुत भाव देने के मूड में नहीं दिखती है। उसे लगता है कि कांग्रेस से ज्यादा नजदीकी से उसके वोट बैंक में सेंध लग सकती है। यह वोट कांग्रेस को जा सकता है लेकिन बसपा अप्रत्याशित फैसले लेने के लिए भी जानी जाती रही है।
या है लेकिन यह फैसला मजबूरी का ही दिखता है। इन दोनों पार्टी के तीन विधायक सरकार की स्थिरता के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। पर इसके बावजूद बसपा का कांग्रेस के प्रति आक्रामक रवैये में फिलहाल बदलाव नहीं दिखता है। मायावती ने तो हाल ही में इन राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा व कांग्रेस को एक जैसा बताते हुए इनसे सावधान रहने को कहा था।
तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने व पार्टी का ग्राफ बढ़ने के बावजूद लगता नहीं कि यूपी में गठबंधन के वक्त कांग्रेस की अपेक्षाकृत ज्यादा सीटों की मांग पर गौर होगा। इस समय गठबंधन की कुंजी मायावती के हाथ हैं और समाजवादी पार्टी गठबंधन बनाने की हर मुमकिन कोशिश के तहत बसपा की राह पर चलती दिखती है।
जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव बाद कांग्रेस के समर्थन से जद सेकुलर के नेता एचडी कुमार स्वामी मुख्यमंत्री बने तब उनके शपथ ग्रहण समारोह में न केवल मायावती ने शिरकत की बल्कि उस वक्त वहां मौजूद सोनिया गांधी व मायावती के बीच खासी आत्मीयता पूर्ण मुलाकात भी हुई थी। इस आयोजन में तब अखिलेश यादव, पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत समेत विपक्षी दलों के तमाम बड़े नेता शामिल हुए थे। उस वक्त बसपा ने जद सेकुलर के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन यूपी के हालात खासे जुदा हैं और बसपा कांग्रेस को बहुत भाव देने के मूड में नहीं दिखती है। उसे लगता है कि कांग्रेस से ज्यादा नजदीकी से उसके वोट बैंक में सेंध लग सकती है। यह वोट कांग्रेस को जा सकता है लेकिन बसपा अप्रत्याशित फैसले लेने के लिए भी जानी जाती रही है।
यह दोनों नेता इससे पहले दिल्ली में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पहल पर एनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों की बुलाई गई बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे। वैसे तो मध्य प्रदेश की सरकार के बहुमत की कमी को पूरा करने के लिए बसपा व सपा ने समर्थन दि
कांग्रेस ( ) की तीनों सरकारों के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न होकर बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ( ) ने दूरी बनाई तो उनके नए सहयोगी बने सपा मुखिया अखिलेश यादव ( ) ने भी आमंत्रण के बावजूद शिरकत नहीं की। सपा-बसपा के इस कदम को सीधे सीधे यूपी में बनने वाला गठबंधन के दाव-पेच के रूप में देखा जा रहा है।
यह दोनों नेता इससे पहले दिल्ली में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पहल पर एनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों की बुलाई गई बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे। वैसे तो मध्य प्रदेश की सरकार के बहुमत की कमी को पूरा करने के लिए बसपा व सपा ने समर्थन दिया है लेकिन यह फैसला मजबूरी का ही दिखता है। इन दोनों पार्टी के तीन विधायक सरकार की स्थिरता के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। पर इसके बावजूद बसपा का कांग्रेस के प्रति आक्रामक रवैये में फिलहाल बदलाव नहीं दिखता है। मायावती ने तो हाल ही में इन राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा व कांग्रेस को एक जैसा बताते हुए इनसे सावधान रहने को कहा था।
तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने व पार्टी का ग्राफ बढ़ने के बावजूद लगता नहीं कि यूपी में गठबंधन के वक्त कांग्रेस की अपेक्षाकृत ज्यादा सीटों की मांग पर गौर होगा। इस समय गठबंधन की कुंजी मायावती के हाथ हैं और समाजवादी पार्टी गठबंधन बनाने की हर मुमकिन कोशिश के तहत बसपा की राह पर चलती दिखती है।
जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव बाद कांग्रेस के समर्थन से जद सेकुलर के नेता एचडी कुमार स्वामी मुख्यमंत्री बने तब उनके शपथ ग्रहण समारोह में न केवल मायावती ने शिरकत की बल्कि उस वक्त वहां मौजूद सोनिया गांधी व मायावती के बीच खासी आत्मीयता पूर्ण मुलाकात भी हुई थी। इस आयोजन में तब अखिलेश यादव, पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत समेत विपक्षी दलों के तमाम बड़े नेता शामिल हुए थे। उस वक्त बसपा ने जद सेकुलर के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन यूपी के हालात खासे जुदा हैं और बसपा कांग्रेस को बहुत भाव देने के मूड में नहीं दिखती है। उसे लगता है कि कांग्रेस से ज्यादा नजदीकी से उसके वोट बैंक में सेंध लग सकती है। यह वोट कांग्रेस को जा सकता है लेकिन बसपा अप्रत्याशित फैसले लेने के लिए भी जानी जाती रही है।
या है लेकिन यह फैसला मजबूरी का ही दिखता है। इन दोनों पार्टी के तीन विधायक सरकार की स्थिरता के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। पर इसके बावजूद बसपा का कांग्रेस के प्रति आक्रामक रवैये में फिलहाल बदलाव नहीं दिखता है। मायावती ने तो हाल ही में इन राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा व कांग्रेस को एक जैसा बताते हुए इनसे सावधान रहने को कहा था।
तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने व पार्टी का ग्राफ बढ़ने के बावजूद लगता नहीं कि यूपी में गठबंधन के वक्त कांग्रेस की अपेक्षाकृत ज्यादा सीटों की मांग पर गौर होगा। इस समय गठबंधन की कुंजी मायावती के हाथ हैं और समाजवादी पार्टी गठबंधन बनाने की हर मुमकिन कोशिश के तहत बसपा की राह पर चलती दिखती है।
जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव बाद कांग्रेस के समर्थन से जद सेकुलर के नेता एचडी कुमार स्वामी मुख्यमंत्री बने तब उनके शपथ ग्रहण समारोह में न केवल मायावती ने शिरकत की बल्कि उस वक्त वहां मौजूद सोनिया गांधी व मायावती के बीच खासी आत्मीयता पूर्ण मुलाकात भी हुई थी। इस आयोजन में तब अखिलेश यादव, पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत समेत विपक्षी दलों के तमाम बड़े नेता शामिल हुए थे। उस वक्त बसपा ने जद सेकुलर के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन यूपी के हालात खासे जुदा हैं और बसपा कांग्रेस को बहुत भाव देने के मूड में नहीं दिखती है। उसे लगता है कि कांग्रेस से ज्यादा नजदीकी से उसके वोट बैंक में सेंध लग सकती है। यह वोट कांग्रेस को जा सकता है लेकिन बसपा अप्रत्याशित फैसले लेने के लिए भी जानी जाती रही है।