मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर हुई पत्थरबाजी की घटना के बारे
में नंदन टोला का जो कोई भी बात कर रहा था, वह बात करते-करते भावुक हो
उठता.
बुजुर्ग विषनाथ पासवान लाठी का सहारा लेकर चलते हैं.
घटना के उन दिनों के बारे में बताते हैं, "दो महीने तक टोला में कोई आदमी नहीं रहता था. सब लोग गांव छोड़ कर भाग गए थे. घर में केवल महिलाएं रहती थीं. पुलिस पूछताछ और गिरफ्तारी के लिए आती और महिलाओं के साथ ज्यादती करती.''
''पत्थरबाजी कौन किया था ये सब फोटो में आ चुका है. लेकिन नाम लगा दिया गया कि रविदास टोला और मुसहर टोला पत्थरबाजी किया है."
"हमलोगों का कोई काम भी नहीं हुआ. हमलोगों को मुख्यमंत्री से मिलने भी नहीं दिया गया. और बाद में हमारी बात भी नहीं सुनी गई. उल्टा पूछताछ के नाम पर और बदला लेने की नियत से हमारे यहां की बहु बेटियों पर जुल्म किया गया."
पास ही में खड़े मुटुर राम विषनाथ पासवान को रोककर कहते हैं, "आप ही बताइए. इस टोला में हरिजन और मुसहर के कुल 100 घर हैं. जिसमें 100 से अधिक लोगों के ख़िलाफ़ नामजद प्राथमिकी दर्ज हुई थी और करीब 700 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा हुआ था. पुलिस ने हड़बड़ी में सब किया. खूब अत्याचार सहे हमलोग. जो औरतें आज तक कभी घर से बाहर नहीं निकलीं, उनके ख़िलाफ़ भी केस कर दिया."
यमुना राम खुद को पत्थरबाजी की घटना में सबसे सताया हुआ मानते हैं.
कारण पूछने पर कहते हैं, "पुलिस ने पीटकर अधमरा करके छोड़ दिया था. उन्हें लगा था कि मैं मर गया हूं. मेरी पिटाई होती देखकर जब पत्नी राम रत्ती मुझको बचाने आई तो न सिर्फ उसे बल्कि टोले के दूसरे लोगों को भी पीटा गया. हम तो शौचालय के लिए खड़े थे. क्योंकि टोला में किसी के पास उतनी जमीन ही नहीं है कि शौचालय बनाया जा सका. हमलोग तो मुख्यमंत्री से केवल यही कहना चाहते थे."
पुलिस की जांच रिपोर्ट और डुमरांव थाने में दर्ज प्राथमिकी में कुछ ऐसे नामजद अभियुक्त भी शामिल हैं, जिनकी घटना यानी 12 जनवरी से पहले ही मृत्यु हो चुकी है.
पुलिस की एफ़आईआर में विजय राम और सुशील महतो के दो ऐसे ही नाम शामिल हैं.
पुलिस की एफ़आईआर के सताए हुए अभियुक्तों की बात करें तो एक नाम आता है बृजबिहारी पासवान का.
बृजबिहारी बताते हैं कि उनके घर में चार अभियुक्त हैं. उनके अलावा बेटे, बहु और पत्नी का नाम भी एफआईआर में शामिल है. जबकि बेटा पिछले डेढ़ साल से परदेस से आया नहीं है. बहु घर के बाहर नहीं निकलती और पत्नी की तबियत ऐसी नहीं है कि वह घर से बाहर निकल कर कहीं जा सके.सात निश्चय योजना' की समीक्षा यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर हुए हमले का दोषी कौन है इसकी जांच पुलिस कर रही है. मामला अब अदालत के अधीन है.
लेकिन जब पहली बार मामला प्रकाश में आया था तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकार और पार्टी के लेवल से वस्तुस्थिति की जांच के लिए बिहार जदयू अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विद्यानंद विकल को नंदन गांव भेजा था.
विकल ने 19 जनवरी के दिन नंदन गांव में जाकर मामले की तहकीकात की थी.
विकल ने वापस आकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जो रिपोर्ट सौंपी थी उसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि कांड के मुख्य साजिशकर्ता रामजी यादव और उसके दूसरे शागिर्दों को केंद्र में रखकर अनुसंधान की त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए.
विकल ने अपनी रिपोर्ट के आखिर में यह भी लिखा था कि "महिलाओं, दलितों-महादलितों और अन्य वर्ग के निर्दोष लोगों का नाम प्राथमिकी से हटाने और जेल में बंद लोगों को सरकार के स्तर से रिहा करने का विचार करना चाहिए."
बीबीसी के साथ बातचीत में विद्यानंद विकल ने कहा, "हमने अपनी जांच पूरी ईमानदारी से की. वहां जाकर पीड़ितों से बात की. मेरी ही रिपोर्ट के बाद सभी को वस्तुस्थिति का मालूम चल पाया था. उसके बाद ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये ऐलान किया था सरकार अभियुक्तों के बेल का विरोध नहीं करेगी."
स्थानीय विधायक ददन पहलवान और मंत्री संतोष निराला की भूमिका पर सवाल उठाते हुए विकल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि "स्थानीय विधायक ददन पहलवान और मंत्री संतोष निराला को मुख्यमंत्री के भ्रमण के पूर्व ही महादलित टोला वाले लोगों ने अपनी बातों से अवगत करा दिया था. यदि विधायक और मंत्री जी ने थोड़ी गंभीरता के साथ महादलितों को समझाने की कोशिश की होती तो साजिश रचने वालों के चंगुल में जाने से बचा लिया जा सकता था."
विकल कहते हैं, "मामले का असली साजिशकर्ता रामजी यादव थे जो खुद एक राजद समर्थक है. वो और उसके शागिर्दों ने महादलितों को प्रदर्शन और पथराव के लिए उकसाया था. हमारी जांच में ये भी मालूम चला कि उसका वर्तमान मुखिया से तनाव था. वह राजद समर्थक है. हमनें तो प्राथमिकी में दर्ज 34 लोगों का नाम छांट कर रखे हैं जो राजद समर्थक हैं."
इस सवाल पर कि उनकी रिपोर्ट में दलितों, महिलाओं और महादलितों के नाम प्राथमिकी से हटाए जाने वाले सुझाव पर मुख्यमंत्री ने क्यों नहीं अमल किया?
जवाब में विकल कहते हैं, "उनका काम केवल रिपोर्ट करना था. उनकी रिपोर्ट के बाद से ही सरकार का रुख मामले पर नरम पड़ गया. हमने अपनी रिपोर्ट बनाकर मुख्यमंत्री महोदय के विचारार्थ छोड़ दिया था."
हमने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी ई-मेल के जरिए गांव वालों की मांगें और उनके आरोपों पर जवाब मांगा है. उनके जवाब की प्रतीक्षा है.
बुजुर्ग विषनाथ पासवान लाठी का सहारा लेकर चलते हैं.
घटना के उन दिनों के बारे में बताते हैं, "दो महीने तक टोला में कोई आदमी नहीं रहता था. सब लोग गांव छोड़ कर भाग गए थे. घर में केवल महिलाएं रहती थीं. पुलिस पूछताछ और गिरफ्तारी के लिए आती और महिलाओं के साथ ज्यादती करती.''
''पत्थरबाजी कौन किया था ये सब फोटो में आ चुका है. लेकिन नाम लगा दिया गया कि रविदास टोला और मुसहर टोला पत्थरबाजी किया है."
"हमलोगों का कोई काम भी नहीं हुआ. हमलोगों को मुख्यमंत्री से मिलने भी नहीं दिया गया. और बाद में हमारी बात भी नहीं सुनी गई. उल्टा पूछताछ के नाम पर और बदला लेने की नियत से हमारे यहां की बहु बेटियों पर जुल्म किया गया."
पास ही में खड़े मुटुर राम विषनाथ पासवान को रोककर कहते हैं, "आप ही बताइए. इस टोला में हरिजन और मुसहर के कुल 100 घर हैं. जिसमें 100 से अधिक लोगों के ख़िलाफ़ नामजद प्राथमिकी दर्ज हुई थी और करीब 700 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा हुआ था. पुलिस ने हड़बड़ी में सब किया. खूब अत्याचार सहे हमलोग. जो औरतें आज तक कभी घर से बाहर नहीं निकलीं, उनके ख़िलाफ़ भी केस कर दिया."
यमुना राम खुद को पत्थरबाजी की घटना में सबसे सताया हुआ मानते हैं.
कारण पूछने पर कहते हैं, "पुलिस ने पीटकर अधमरा करके छोड़ दिया था. उन्हें लगा था कि मैं मर गया हूं. मेरी पिटाई होती देखकर जब पत्नी राम रत्ती मुझको बचाने आई तो न सिर्फ उसे बल्कि टोले के दूसरे लोगों को भी पीटा गया. हम तो शौचालय के लिए खड़े थे. क्योंकि टोला में किसी के पास उतनी जमीन ही नहीं है कि शौचालय बनाया जा सका. हमलोग तो मुख्यमंत्री से केवल यही कहना चाहते थे."
पुलिस की जांच रिपोर्ट और डुमरांव थाने में दर्ज प्राथमिकी में कुछ ऐसे नामजद अभियुक्त भी शामिल हैं, जिनकी घटना यानी 12 जनवरी से पहले ही मृत्यु हो चुकी है.
पुलिस की एफ़आईआर में विजय राम और सुशील महतो के दो ऐसे ही नाम शामिल हैं.
पुलिस की एफ़आईआर के सताए हुए अभियुक्तों की बात करें तो एक नाम आता है बृजबिहारी पासवान का.
बृजबिहारी बताते हैं कि उनके घर में चार अभियुक्त हैं. उनके अलावा बेटे, बहु और पत्नी का नाम भी एफआईआर में शामिल है. जबकि बेटा पिछले डेढ़ साल से परदेस से आया नहीं है. बहु घर के बाहर नहीं निकलती और पत्नी की तबियत ऐसी नहीं है कि वह घर से बाहर निकल कर कहीं जा सके.सात निश्चय योजना' की समीक्षा यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर हुए हमले का दोषी कौन है इसकी जांच पुलिस कर रही है. मामला अब अदालत के अधीन है.
लेकिन जब पहली बार मामला प्रकाश में आया था तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकार और पार्टी के लेवल से वस्तुस्थिति की जांच के लिए बिहार जदयू अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विद्यानंद विकल को नंदन गांव भेजा था.
विकल ने 19 जनवरी के दिन नंदन गांव में जाकर मामले की तहकीकात की थी.
विकल ने वापस आकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जो रिपोर्ट सौंपी थी उसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि कांड के मुख्य साजिशकर्ता रामजी यादव और उसके दूसरे शागिर्दों को केंद्र में रखकर अनुसंधान की त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए.
विकल ने अपनी रिपोर्ट के आखिर में यह भी लिखा था कि "महिलाओं, दलितों-महादलितों और अन्य वर्ग के निर्दोष लोगों का नाम प्राथमिकी से हटाने और जेल में बंद लोगों को सरकार के स्तर से रिहा करने का विचार करना चाहिए."
बीबीसी के साथ बातचीत में विद्यानंद विकल ने कहा, "हमने अपनी जांच पूरी ईमानदारी से की. वहां जाकर पीड़ितों से बात की. मेरी ही रिपोर्ट के बाद सभी को वस्तुस्थिति का मालूम चल पाया था. उसके बाद ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये ऐलान किया था सरकार अभियुक्तों के बेल का विरोध नहीं करेगी."
स्थानीय विधायक ददन पहलवान और मंत्री संतोष निराला की भूमिका पर सवाल उठाते हुए विकल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि "स्थानीय विधायक ददन पहलवान और मंत्री संतोष निराला को मुख्यमंत्री के भ्रमण के पूर्व ही महादलित टोला वाले लोगों ने अपनी बातों से अवगत करा दिया था. यदि विधायक और मंत्री जी ने थोड़ी गंभीरता के साथ महादलितों को समझाने की कोशिश की होती तो साजिश रचने वालों के चंगुल में जाने से बचा लिया जा सकता था."
विकल कहते हैं, "मामले का असली साजिशकर्ता रामजी यादव थे जो खुद एक राजद समर्थक है. वो और उसके शागिर्दों ने महादलितों को प्रदर्शन और पथराव के लिए उकसाया था. हमारी जांच में ये भी मालूम चला कि उसका वर्तमान मुखिया से तनाव था. वह राजद समर्थक है. हमनें तो प्राथमिकी में दर्ज 34 लोगों का नाम छांट कर रखे हैं जो राजद समर्थक हैं."
इस सवाल पर कि उनकी रिपोर्ट में दलितों, महिलाओं और महादलितों के नाम प्राथमिकी से हटाए जाने वाले सुझाव पर मुख्यमंत्री ने क्यों नहीं अमल किया?
जवाब में विकल कहते हैं, "उनका काम केवल रिपोर्ट करना था. उनकी रिपोर्ट के बाद से ही सरकार का रुख मामले पर नरम पड़ गया. हमने अपनी रिपोर्ट बनाकर मुख्यमंत्री महोदय के विचारार्थ छोड़ दिया था."
हमने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी ई-मेल के जरिए गांव वालों की मांगें और उनके आरोपों पर जवाब मांगा है. उनके जवाब की प्रतीक्षा है.