Thursday, September 6, 2018

नज़रिया: भारत-अमरीका के सम्मेलन से क्या हासिल हुआ

उन्होंने कहा कि कांग्रेस तेलंगाना के लोगों को कांग्रेस की 'दिल्ली सल्तनत का ग़ुलाम' बनाना चाहती थी और टीडीपी उन्हें आंध्र का ग़ुलाम बनाना चाहती है.
उन्होंने इस बात से इनकार किया उनकी भारतीय जनता पार्टी से नजदीकियां बढ़ रही हैं.
उन्होंने कहा, "किसी भी पार्टी के साथ गठजोड़ नहीं होगा और राज्य में त्रिकोणीय संघर्ष होगा."
केसीआर ने ये भी माना कि टीआरएस के लिए ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) एक दोस्ताना पार्टी की तरह है. उन्होंने उनकी सरकार को अहम मौके पर समर्थन दिया था.
चुनाव के लिए टीआरएस कितनी तैयार है, इसकी झलक इस बात से मिली कि विधानसभा भंग होने के कुछ ही घंटों में केसीआर ने अपनी पार्टी के 105 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी. उन्होंने कहा कि बाकी 14 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा एक हफ़्ते में कर दी जाएगी.
इस बीच, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एन उत्तम कुमार रेड्डी ने कहा कि उनकी पार्टी चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है.
उन्होंने कहा कि चुनाव में लोग केसीआर के भ्रष्ट और पारिवारिक राज्य को खारिज करेंगे और कांग्रेस जीत हासिल करेगी. उन्होंने कहा कि केसीआर को बताना चाहिए कि उन्होंने जल्दी चुनाव कराने का फ़ैसला क्यों किया, इससे राज्य पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा. दिलचस्प है कि साल 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने राज्य विधानसभा में तय वक्त से पहले चुनाव कराने का फ़ैसला किया था. चुनाव आयोग ने साल 2004 के संसदीय चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराए थे और नायडू की तेलुगू देशम पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था.
भारत और अमरीका के रक्षा और विदेश मंत्रियों का बहुप्रतीक्षित '2+2' सम्मेलन गुरुवार को दिल्ली में संपन्न हुआ. इसमें भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, अमरीका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने हिस्सा लिया.
इस सम्मेलन में दोनों देशों के नेताओं ने कई द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की और कुछ ऐसे समझौतों पर भी दस्तख़त किए, जो लंबे समय से लटके हुए थे. इसमें व्यापार, सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मामलों पर भी बात हुई.
पोम्पियो ने कम्युनिकेशंस, कंपैटिबिलिटी, सिक्योरिटी एग्रीमेंट ( ) को दोनों देशों के रिश्ते में मील का पत्थर बताया. भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इससे भारत की रक्षा क्षमता बढ़ेगी.
सबसे बड़ी बात है 
अगर हम देखें तो भारत की ओर पाकिस्तान की ओर से थोपे जाने वाले चरमपंथ पर अमरीका ने जितना दबाव बनाया है, उतना किसी ने नहीं बनाया. लेकिन पाकिस्तान के साथ अमरीका के अपने हित हैं और कुछ दिक्कतें भी हैं.
इसलिए इस मामले को लेकर कुछ सवालिया निशान जरूर हैं मगर यह तो मानना पड़ेगा कि भारत को दहशतगर्दों की जितनी ख़ुफ़िया सूचनाएं मिलती हैं और भारत-अमरीका के बीच ऐसी सूचनाओं को जितना-आदान प्रदान होता है, उसमें फ़र्क आया है.
जैसे कि पाकिस्तान के अंदर सक्रिय दहशतगर्दों को नामजद करना, उनके ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरन्ट जारी करना. हाल ही में दाऊद इब्राहिम के लिए मनी लॉन्डरिंग का काम करने वाले उसके सहयोगी के ख़िलाफ़ अरेस्ट वॉरन्ट जारी हुए हैं. तो अमरीका इसपर जितना काम कर पाया है, उतना भारत ख़ुद नहीं कर पाता.
लेकिन सवाल यह है कि क्या अमरीका चरमपंथी ठिकानों को ध्वस्त करेगा या भारत की इस काम में मदद करेगा, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगा. फिर भी, दहशतगर्दी के खिलाफ जंग में भारत-अमरीका करीब ही आए हैं. पुराने आश्वासनों को दोहराने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. अगर प्रतिबद्धताओं को दोहराया जाता है तो उसका स्वागत करना चाहिए.
ईरान पर अमरीका द्वारा लगाए प्रतिबंधों का उसके साथ व्यापार करने वाले देशों पर असर पड़ रहा है जिनमें भारत भी शामिल है. इसी तरह भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदना चाहता है मगर ऐसा करने पर उसे अमरीकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में क़यास लगाए जा रहे थे कि 2+2 सम्मेलन के बाद इस मामले में स्थिति स्पष्ट हो सकती है.
इस संबंध में कयास जरूर हैं कि अमरीका रूस से संभावित समझौते को लेकर भारत के लिए नरमी लाएगा या नहीं. मगर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. दूसरा ईरान का प्रश्न यह है कि क्या अमरीका के साथ क़रीबी बढ़ने से भारत को यह छूट मिलेगी कि वह ईरान के साथ अपने रिश्तों के पूरी तरह न तोड़ पाए. इन सवालों का जवाब आने वाले समय में ही मिल पाएगा.
यह ज़रूर है कि इस सम्मेलन से भारत और अमरीका के बीच नज़दीकियां बढ़ी हैं औ  समझौते पर हस्ताक्षर होना इसका संकेत है. यह समझौता लंबे समय से लटका हुआ था और अमरीका में इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही थी.
अमरीका का मानना था कि भारत अगर उसके साथ अच्छे रिश्ते चाहता है तो उसे इन समझौतों को लेकर अपने पूर्वग्रह दूर करने होंगे. मगर मुझे लगता है कि इस सम्मेलन के बाद वह चिंता काफ़ी हद तक हल हो गई है. अब दोनों देशों के रिश्ते यहां से और आगे बढ़ेंगे.
पर भारत और अमरीका का समझौता. यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वह भारत और अमरीका के रिश्ते को अगले स्तर पर लेकर जाएगा. इसका रक्षा मामलों में भी महत्व है और कूटनीतिक मामलों में भी.

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